कर्म
ही
जीवन
है
किसी
गाँव
में
एक
पिता,
अपने
चार
संतान
के
साथ
रहते
थे
।
उनके
चारो
संतान
आपस
में
इस
बात
पर
झगड़ते
रहते
थे
कि
आज
किसने
घर
का
कितना
काम
किया
और
कौन
औरों
से
कम
किया
।
एक
दिन
पिता
ने
चारो
बेटों
को
अपने
पास
बुलाया
और
कहा,’
मैं
आज
तुमलोगों
से
यह
जानना
चाहता
हूँ
कि
तुमलोगों
के
बीच
जो
लड़ाई
–
झगड़े
बने
रहते
हैं,
आखिर
इसका
कारण
क्या
है
?
बड़े
बच्चे
ने
बताया,’
पिताजी
!
छोटू
दिन
भर
खेलने
में
लगा
रहता
है;
दूसरा
और
तीसरा
तबीयत
खराब
होने
का
बहाना
बनाकर
घर
का
काम
नहीं
करते
हैं
।
माँ
!
उन्हें
डाँटती
तक
नहीं
,बल्कि
इन
सबों
का
काम
मुझसे
करवाती
है
।
कहती
है,;
तुम
बड़ा
भाई
है
और
ये
लोग
तुम्हारे
छोटे
भाई
हैं
;
इनसे
प्रतिद्वन्दिता
कैसी
?
पिता
सुनकर
हँस
पड़े
।
बोले,
बेटा
!
कौन
कितना
काम
किया
और
किसने
नहीं
किया,
यह
न
देखकर
मनुष्य
को
हामेशा
अपना
कर्म
करना
चाहिए
।
मनुष्य
का
जीवन
कर्म
करने
के
लिए
हुआ
है
।
तुम
हाथ
की
उँगलियों
को
देखो,
कैसे
दिन
भर
काम
करती
हैं
।
तब
जाकर
घर
में
दो
रोटियाँ
आती
हैं
।
फ़िर
भी
वे
थकती
नहीं
हैं
,
बल्कि
शाम
के
वक्त
अपने
भूखे
मालिक
को
बड़े
प्रेम
से
रोटियाँ
तोड़कर
खिलाती
हैं
।
वह
कहाँ
कहती
हैं
कि
दिन
भर
काम
करके
रोटियाँ
तो
मैंने
ला
दी
,
अब
पैर
की
उँगलियों
से
कहो,’
वे
खिलायेंगी
;
जब
कि
दिन
भर
वे
बैठी
रहती
हैं
।
ऐसा
कहती
है
क्या
?
चारो
बच्चे
एक
साथ
बोल
पड़े,
नहीं
।
तब
पिता
ने
कहा,’
क्या
इसके
बावजूद
भी
तुमलोग
आपस
में
झगड़ोगे
?
बच्चों
का
जवाब
था,
नहीं
।
हमलोग
समझ
गये,
हमें
आपस
में
नहीं
झगड़ना
चाहिए,
बल्कि
जितना
हो
सके,
हमें
अपने
काम
के
साथ
दूसरॊं
के
भी
काम
में
हाथ
बँटाना
चाहिए
।