जीने के लिए भोला भाला बने रहो

 

         

गुरुकुल की शिक्षा पूरी कर, जब सभी विद्यार्थी वापस घर लौटने लगे, तब गुरुजी ने कहा,’ तुमलोग इतने दिनों तक मेरे साथ रहे, मेरी सेवा किये, मुझे आदर दिये । कभी कोई ऐसा काम मन से या कर्म से नहीं किये, जिससे मेरे दिल को चोट लगे । मैं तुमलोगों को पाकर अपने को बहुत भाग्यवान समझता हूँ और खुद पर गर्व भी करता हूँ । इस लम्बी अवधि के दौरान , हमलोग कभी एक दूसरे को अपने से अलग नहीं समझे,सदा ही एक दूसरे के लिए जीये । अब तुमलोग यहाँ से जा रहे हो, तुमलोगों से जुदा होने का गम मुझे कम नहीं है, मगर खुशी इस बात की होती है कि मैं तुमलोगों को शिक्षा देकर अपने मनुज धर्म का पालन कर सका । तुमलोगों ने भी अपने धर्म- कर्म से मेरे दिल में पुत्र का स्थान बना लिया । आज मैं गुरु के साथ – साथ पिता का धर्म निभाऊँगा । ऐसे तो मेरे पास जो भी विद्या के भंडार थे , मैंने सभी तुमलोगों पर लुटा दिये । अब मेरे पास तुमलोगों को देने के लिए कुछ नहीं है । लेकिन पिता स्वरूप मुझे कुछ कहना है । वह यह है कि , जब इस गुरुकुल से बाहर निकलोगे, गृहस्थ जीवन में प्रवेश करोगे । देखोगे, दुनिया में , अच्छे लोग कम ; बुरे अधिक मिलेंगे । वे तुम्हें बिना कारण सतायेंगे । उससे हारना मत, बल्कि उसे हराकर जीने की राह खोजते हुए जीवन – पथ पर बढ़ते रहना । इसके लिए तुमलोगों को मैं एक मंत्र दे रहा हूँ , इसे सदैव याद रखना । जीवन में हमेशा भोला – भाला बने रहना । छात्रों को गुरु की बात कुछ समझ में नहीं आई । सोचने लगे, एक तरफ़ तो गुरुजी कह रहे हैं,’ तुम्हारे जीवन में जो काँटे बनकर बाधा पहुँचाने आये, उन काँटों को उखाड़कर , अपना जीवन – पथ प्रशस्त कर आगे बढ़ते रहना, रुकना मत ; क्योंकि चलते रहना जिंदगी है,रुक जाना मौत । दूसरी तरफ़ ये कह रहे हैं , भोला – भाला बनकर जीना , नहीं तो दुनिया तुम्हें जीने नहीं देगी । दोनों बातें एक साथ कैसे संभव हो सकती है ? बच्चे क्या सोच रहे हैं ? गुरु को उनके मन के भाव समझने  में  जरा  भी देरी नहीं हुई । हँसते हुए बोले, हाँ ! दोनों एक साथ होना
 
 
 
जरूरी है । विद्यार्थी पूछ बैठे, मगर, गुरुजी ! यह कैसे संभव होगा ? ’ गुरुजी ने समझाते हुए कहा,’ मैंने क्या कहा, भोला – भाला बने रहो, अर्थात अच्छे लोगों के लिए भोला और बुरे लोगों के लिए भाला ( भाला का अर्थ होता है, फ़रसा अर्थात लोहे का वह औजार, जिसके प्रहार से मनुष्य हो या कोई भी जीव, मर जाये )। वह तुम्हें भोला समझकर मार नहीं सके; इसलिए भोला और भाला बने रहना ।’ सभी विद्यार्थी दंग रह गये और गुरु का चरण छूते हुए बोले, ’गुरुदेव ! ऐसा ही होगा।’ गुरुजी बोले,’ खुश रहो । ऐसा ही हो, क्योंकि बुरे लोग जहरीले साँप के समान होते हैं । ये अकारण तुम्हें डँसेंगे, जीने नहीं देंगे । इसलिए इनके आगे , चूहे की तरह मत खुद को समर्पण कर देना । जिस तरह चूहे के निहात भोलापन को पाकर साँप उनके विल को अपना घर समझकर घुस जाते हैं और उसको अपना नेवला बनाकर, उसी के विल में विश्राम भी करते हैं । ये बुरे लोग ठीक उसी तरह के होते हैं । इसलिए जीने के लिए भोला – भाला बने रहना ।’

 

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