upendranath akshश्री॰ ‘अश्क’ जी

यह वर्ष श्री॰ उपेंद्रनाथ ‘अश्क’ जी का जन्मशती-वर्ष है।
‘अश्क’ जी का जन्म 14 दिसम्बर 1910 को जालंधर (पंजाब) में हुआ था। उनकी पत्नी श्रीमती कौशल्या अश्क और दो पुत्र — उमेश और नीलाभ।
उनके द्वारा लिखित साहित्य विपुल है:
काव्य-कृतियाँ (8), उपन्यास (10), कहानी-संग्रह(13), नाटक (11), एकांकी-संग्रह (7), आलोचना-ग्रंथ (4), निबन्ध-संग्रह (4), संस्मरण-संकलन (4), जीवनी, साक्षात्कार-संकलन (5) के अतिरिक्त अनुवाद (7) और सम्पादन (‘संकेत’ (1956 हिन्दी), (1962 उर्दू) भी।
मेरे उनसे बड़े आत्मीय संबंध रहे। समय-समय पर एकांकी नाटकों के सम्पादन का दायित्व मुझे सौंपा जाता रहा। इन संकलनों में ‘अश्क’ जी के एकांकी शामिल न हों यह नामुमकिन था। अत: अनुमति-प्राप्ति-हेतु, मुझे समय-समय पर उनसे पत्र-व्यवहार करना पड़ा। उनके सौजन्य और औदार्य से मैं बड़ा प्रभावित हुआ। ‘अश्क’ जी ने प्रकाशन-अनुमति मुझे तुरन्त दी।
जिन दिनों मैं ‘जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर’ से सम्बद्ध ‘कमलाराजा कन्या शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, ग्वालियर’ में हिन्दी-विभाग का अध्यक्ष था, ‘अश्क’ जी को एक विशेष कार्यक्रम में आमंत्रित किया। उनके पुत्र श्री॰ उमेश मुझसे मिलने ग्वालियर आए। उसके बाद ‘अश्क’ जी का बड़ा प्यारा ख़त आया। यह पत्र ‘अश्क’ जी की अनेक विशेषताओं को उजागर करता है।

‘अश्क’ उपेन्द्रनाथ, 5-खुसरोबाग़ रोड, इलाहाबाद — 211 001 / दिनांक : 25-2-81

प्रियवर महेंद्रभटनागर साहब,
कई दिनों से आपको पत्र लिखने की सोच रहा हूँ, लेकिन चाहने पर भी समय नहीं निकाल पाया और इस सयम रात के दो बजे बैठ कर ये पंक्तियाँ लिख रहा हूँ।
आपने साग्रह ग्वालियर बुलाया था, चण्डीगढ़ भी तार दिया था, लेकिन लाख इच्छा रखने के बावज़ूद मैं आपके उस स्नेह भरे आमंत्रण की लाज न रख सका, जिसका मुझे अफ़सोस है।
20 वर्षों बाद पंजाब गया था। मन में आयी कि दो दिन को अपने जन्म-स्थान जालंधर भी होता चलूँ। केवल दो दिन का प्रोग्राम बनाया था, पर वहाँ दूरदर्शन-केन्द्र के निदेशक मेरी उपस्थिति का लाभ उठाने की गर्ज़ से ज़ोर देने लगे कि मेरे उपन्यास ‘गिरती दीवारें’ के लोकेल पर — याने मेरे पैतृक घर और मेरी ससुराल बस्ती ग्रज़ा जाकर डाक्यूमेण्टरी बनाएंगे। इसलिए रुकना पड़ा और दो के बदले दस दिन लग गए।
नये साल के तीन सप्ताह तो इसी 70 वीं वर्ष-गाँठ के चक्कर में निकल गए और ढेर सारी इकट्ठी हो जाने वाली डाक को निपटाने और घरेलू परेशानियों के पार पाने के प्रयास में — जो नीलाभ की अनुपस्थिति में बहुत बढ़ गयी हैं। उसने पंद्रह वर्षोंसे सब काम सँभाल रखा था और मैं सारा वक़्त लेखन में गुज़ारता था, अब इस बुढ़ापे में प्रकाशन की अनेक चिन्ताएँ भी सिर पर सवार हो गयी हैं।
बहरहाल सबसे पहले तो आपके आग्रह की रक्षा न कर पाने के लिए आपसे क्षमा-याचना करता हूँ और वादा करता हूँ कि यदि स्वास्थ्य ठीक रहा और आपने फिर कभी बुलाया तो ज़रूर हाज़िर हूंगा। आपसे भी अनुरोध करता हूँ कि यदि इस बीच आप इलाहाबाद आयें तो मिले बिना न जायँ। बल्कि असुविधा न हो तो मेरे यहाँ ही ठहरें। यथासम्भव हम आपको किसी तरह का कष्ट न होने देंगे।
गत दिसम्बर में मेरी निम्नलिखित तीन पुस्तकें छपी हैं ( निमिषा’ : उपन्यास, ‘मुखड़ा बदल गया’ : एकांकी-संग्रह, ‘चेहरे’: अनेक’- 3 : जीवनी-खंड)। अपनी शुभकामनाओं के साथ भेज रहा हूँ। पढ़ें तो अपने इम्प्रेशन ज़रूर दें।
उमेश आपसे मिल कर आया था तो उत्साहित था। ऐसी कठिनाई में आपने सहायता का हाथ बढ़ाया है, उसके लिए भी आभार लें। आपको किसी तरह की शिकायत का अवसर वह नहीं देगा।
सस्नेह,
उपेंद्रनाथ ‘अश्क’

पुनश्च:
मुझे अचानक फिर दिल्ली जाना पड़ रहा है। सूचना-मंत्री श्री साठे ने जाने किस परामर्श के लिए बुलाया है और वहाँ कितने दिन लग जायँ, इसलिए इतनी रात गये ये पंक्तियाँ जल्दी-जल्दी लिखी हैं।

‘अश्क’ जी जैसे सर्वतोमुखी प्रतिभा-सम्पन्न साहित्यकार कम ही देखने में आते हैं। उनमें कार्य-क्षमता अद्भुत थी।

your comments in Unicode mangal font or in english only. Pl. give your email address also.

HTML Comment Box is loading comments...
 

Free Web Hosting