ऐसा भी हो जाता है जब कि शब्द नहीं आते.....
आ भी जाए तो फिर आकर कहीं नहीं जाते.....
किसने समझा है इन शब्दों के मतलब को....
किसी की समझ में ये मतलब ही नहीं आते.....
शब्दों की तलाश में हम अकसर खो ही जाते हैं
और लौट कर ये रस्ते फिर नज़र भी नहीं आते
मन के तूफानों में अक्सर ही हम डूब जाते हैं....
और फिर यही शब्द तो हमें रास्ता हैं दिखाते.....
इक ज़रा प्यार से जब कभी इनको बोला करो....
बड़े-बड़े पत्थर भी फिर कोमल से फूल बन जाते
कभी तो अपने मन को मसोस कर धर देते हैं हम
और कभी आसमां की जद में उड़ने को चले जाते
हमसे यूँ बेमतलब ही उखड़े-उखड़े तुम रहा ना करो
हमसे भी तुम्हारे नखरे "गाफिल" सहे नहीं जाते....