बुढ़ापा!

जवाँ जब वक़्त की दहलीज़ पर आंसू बहाता है,
बुढ़ापा ज़िन्दगी को थाम कर जीना सिखाता है।
तजुर्बे उम्र भर के चेहरे की झुर्रियां बन कर,
किताबे-ज़िंदगी में इक नया अंदाज़ लाता है।  
पुराने ख़्वाब को फिर से नई इक ज़िन्दगी देकर,
अधूरे से पलों को फिर कहानी में सजाता है।
किसी के चश्म पुर-नम दामने-शब में अंधेरा हो,
बुझे दिल के अंधेरे में शमां फिर से जलाता है।
 
क़दम जब भी किसी के बहक जाते हैं जवानी में,
भटकती ज़िन्दगी में इक नई आशा दिलाता है।
 
महावीर शर्मा

 

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