दर्द............
भीतर बाहर फर्क मिलते है
केवल केवल दर्द मिलते है
आतताइयों के ठहाके गूंजते
मासूम चहेरे जर्द मिलते है
घाटियां डूबी खौफ सन्नाटे में
आंखें में लहू गर्म मिलते है
राजनीति के मीठे शब्दों में
शातिर तीरों से हर्फ मिलते है
मुश्किल में किससे उम्मीद रखें
अपने भी खुदगर्ज मिलते है
...........किरण राजपुरोहित नितिला