दरमियां यूँ ना फासले होते
काश ऐसे भी सिलसिले होते
हमने तो मुस्करा के देखा था
काश वोह भी ज़रा खुले होते
जिन्दगी तो फरेब देती है
मौत से काश हम मिले होते
अब के चारों तरफ़ अँधेरा है
दीप उम्मीद के जले होते
हम जुबां पे न लाते उनकी बात
होठ अपने अगर सिले होते
अपनी हम कहते उनकी भी सुनते
शिकवे रहते न फ़िर गिले होते
काश अपने उदास आँगन में
फूल उम्मीद के खिले होते
कट ही जाती सफर की लम्बी रात
"चाँद" तारों के काफिले होते
चाँद शुक्ला हदियाबादी
डेनमार्क