हौले-हौले हलाल न करें
-महेश चन्द्र द्विवेदी
इतनी आरज़ू है, वह दिखावटी ख़याल न करें,
हमें बहलाने की गरज़, हमसे विसाल न करें.
मेरी यादों को अपने ख्वाबों से भी निकाल दें,
पर बेबस बहते मेरे आंसुओं पर सवाल न करें.
संगेदिल हैं- बने रहें; मोमदिल बनकर न कहें,
उन्हें मजबूर मानकर हम कोई मलाल न करें.
बेवफ़ाई पर धुंआं ज़रूर उठेगा सुलगते दिल से,
धुंएं से उठे अश्क़ दिखाकर, इसे मशाल न करें.
यकलख़्त हलाक होने से कहां डरता है 'महेश'?
झटके से क़त्ल करें, हौले-हौले हलाल न करें.
शब्दार्थ:
विसाल: मिलन; संगेदिल: पत्थरदिल; यकलख़्त: एक क्षण में, अकस्मात; हलाक होना: मारा जाना; हलाल करना: कलमा पढते हुए धीरे धीरे गर्दन काटना