इस दौर में इंसान क्यों बेहतर नहीं मिलते
रेह्ज़न मिलेंगे राह में रहबर नहीं मिलते
घबरा गये हो देख कर ये घाव क्यों यारों
सच बोलने पर किस जगह पत्थर नहीं मिलते
सहमें हुए हैं देखिये चारों तरफ़ बच्चे
किलकारियाँ गूजें जहाँ वो घर नहीं मिलते
गिनती बढ़ाने के लिए लाखों मिलेंगे पर
खातिर अना के जो कटें वो सर नहीं मिलते
अंदाज़ ही तुमको नहीं तकलीफ का जिनके
है जोश तो दिल में मगर अवसर नहीं मिलते
माँ की दुआओं में छिपे बैठे मिलें मुझको
दैरो हरम में रब कभी जा कर नहीं मिलते
घर से चलो तो याद ये दिल में रहे नीरज
दिलकश हमेशा राह में मंज़र नहीं मिलते