जब बाबा थे
रिश्तों का एक समन्दर था
जब बाबा थे
आंगन में सांझा चूल्हा था
जब बाबा थे
कहीं कोई दीवार न थी
जब बाबा थे
घर में नियमों का बंधन था
जब बाबा थे
मां के सर रहता आंचल था
जब बाबा थे
शर्म-औ-हया का पर्दा था
जब बाबा थे
बैठक में सजती चौपल थी
जब बाबा थे
गीत सुनाता हुक्का था
जब बाबा थे
भैया का स्वर भी नीचा था
जब बाबा थे
जीवन बड़ा ही सुन्दर था
जब बाबा थे।
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विकेश निझावन