जिंदगी लम्हा
-लम्हा
घटती चली
गई
हवा, दरिया
सी, बहती
चली गई
अब कैसी
लड़ाई उससे, जीवन
को
तमाशा- ऐ- जमाना बनाकर
चली गई
साजे दिल को जब जरूरत थी ,जिंदगी की
आवाज की,तब ठुकराकर जिंदगी चली गई
जलते - जलते सुबह
से शाम
गुजरी
दिल है
शोला , बताकर चली
गई
दिले दर्द की
फ़रियाद क्या सुनाऊँ, बगैर
आईने का जलवा दिखाकर चली गई