खत
उसका
जब
जलाने
लगा
शब्द
–
शब्द
आँसू
बहाने
लगा
हुस्न
तो
चुपचाप
था
,
इश्क
का
ही
पावँ
लड़खड़ाने
लगा
धरती
–
अम्बर
काँप
उठा
बसंत
मरसिया
गीत
गाने
लगा
तमाम
उम्र
जिसके
साये
में
गुजरा
आहिस्ता–
आहिस्ता
दूर
जाने
लगा
पत्ता
–
पत्ता
,
यह
कहने
लगा
गुल
कहाँ
है,बाग
तो
जाने
लगा
HTML Comment Box is loading comments...