खिजा ही खिजा है गुलशन में अब कहां बहार है जिसको प्यार करते हैं वो सनम उस पार है जालिम जमाने ने काट कर फेंक दिए मेरे पर एक गिरा इधर और दूसरा गिरा उस पार है शिकवा मोहब्बत का किससे करें ए दोस्त हुस्न-ए-दौरा सुनते हैं आज भी उस पार है गर कल की फिक्र करता है तो करे कोई आंधियां हैं इस तरफ बरसात तो उस पार है कैसे समेट लूं खुशियों को दामन में अपने बता मेरे पास तो है कतरा लिबास मेरा उस पार है शुक्रिया करने की बात अब कहां से उठती है इस तरफ जजबात हैं रस्म सारी उस पार है होता है परेशां दिल मुश्किलें होती हैं बहुत बीमार है इस तरफ दर्द-ए-दवा उस पार है .........................................................................
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