आसमान-ए-घटा और तुम्हारी जुल्फों का क्या नाता है कोई समझाए मुझको बाग-ए-गुलाब और तुम्हारे लबों का क्या नाता है कोई समझाए मुझको मुझ पागल की तबीयत के बारे में सोच कर वक्त क्यों बरबाद करते हो हुस्न-ए-दीवानगी और तुम्हारी शख्सियत में क्या नाता है कोई समझाए मुझको एक दिन तो कयामत आएगी सुन रहे हैं बरसों से आज और अभी तक वक्त-ए-इन्तजार और तुम्हारी मौजूदगी में क्या नाता है कोई समझाए मुझको खाली पैमानों से भी भला कोई मोहब्बत करता है अव्वल दर्जे तक बोतल-ए-नशा और तुम्हारी आंखों में क्या नाता है कोई समझाए मुझको ....................................................................................... मुकेश पोपली, सी-254, विकासपुरी, नई दिल्ली-110018
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