आसमान-ए-घटा और तुम्हारी जुल्फों का क्या नाता है
                                        कोई समझाए मुझको
बाग-ए-गुलाब और तुम्हारे लबों का क्या नाता है
                                        कोई समझाए मुझको
 
मुझ पागल की तबीयत के बारे में सोच कर वक्त
                                        क्यों बरबाद करते हो
हुस्न-ए-दीवानगी और तुम्हारी शख्सियत में क्या नाता है
                                        कोई समझाए मुझको
 
एक दिन तो कयामत आएगी सुन रहे हैं बरसों से
                                        आज और अभी तक
वक्त-ए-इन्तजार और तुम्हारी मौजूदगी में क्या नाता है
                                        कोई समझाए मुझको
 
खाली पैमानों से भी भला कोई मोहब्बत करता है
                                        अव्वल दर्जे तक
बोतल-ए-नशा और तुम्हारी आंखों में क्या नाता है
                                        कोई समझाए मुझको
 


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मुकेश पोपली,
सी-254, विकासपुरी,
नई दिल्ली-110018
 

 
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