कल्पनाओ के नीले गगन में विचरने से क्या मिलेगा ,
सोच की उफनती नदी में यूँ ही तैरने से क्या मिलेगा ll
अपने जज्बातों को तू कब तक मुट्ठियों में कैद रखेगा ,
अन्दर झाँक के देख मेरे भाई जरूर तुझे खुदा मिलेगा ll
ग़म की काली अँधेरी रात से इतना डरता आखिर क्यूँ है ,
कुछ डेग तो बढ़ा कहीं ना कहीं जरूर तुझे दिया मिलेगा ll
बादलों से बैर रखना अब तो पुराना रिवाज़ सा हो चला है ,
बंद कर यूँ पत्थर फेंकना आखिर में अपना ही सर मिलेगा ll
काश बिकती मुस्कुराहटें भी यूँ ही बाज़ार में किसी दुकान पे ,
कभी मेरे शहर भी आके देखना हर कोई खुशगवार मिलेगा ll
परिभाषा ही बदल दी चन्द काले लोगों ने खादी के उजलेपन की ,
मन से तो मिट चुके शायद अब सिर्फ नोटों पे ही गाँधी मिलेगा ll
गीली मिट्टी पे लिखे नामो का तू कब तक सहारा लेगा 'परिमल' ,
दिल से देखना कभी मंदिर में तुझे खुदा मस्जिद में राम मिलेगा ll
परिमल प्रियदर्शी
भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थान , खड़गपुर
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