सुनसान रात ,खामोश दिन , उजड़ी शामें
उसकी आवाज़ सुनने को बे -करार हयात
एक बेचैनी डसती रहती हैं लम्हा- लम्हा
मौत आ जाए खुदा तो मिल जाए निजात .
आंख पथरीली होकर भी रोटी जाती हैं
हर धड़कन के संग-संग चीखता है जिया
लबों की खुश्की,हलक की रेगिस्तानी प्यास
बढती जाती हैं पल-पल और झटपटाता हिया .
ताकता रहता हूँ खलाओ मे तुझमे खोकर
बैठा रहता हूँ दीवानावार याद मे तेरी
हवाओं मे सुनाई देती हैं आवाजें सबकी
पर सुनाई देती नहीं मुझे सदायें तेरी .
कल तलक मैं तेरा अपना था तुम थी मेरी
आज एक लम्हे मे हम हो गए अजनबी जैसे
खवाब नज़रों में झिलमिलाते थे जो कल तक
छिटक गए यूं आसमान में सितारें जैसे
मुझमे इतनी कमी थी क्यूँ कि मेरे साथ रहीं
कियों साल-दर-साल गुजारे दीवाने के साथ
मेरी चाहत में अब खुदगर्जी दिखाई देती हैं
ज़िन्दगी के कई मुकाम गुज़र जाने के बाद .
मैं इसमें भी खुश हूँ क्यूँकि तुम खुश हो
तुम शादाब रहो यही आरजू थी मेरी जान
और जब भी कभी छा जाएँ आँधियारे बादल
याद कर लेना मुझे बेशक सोच एक अनजान
तुमने जो भी दिया उसका तहे दिल से शुक्रिया
तेरी चाहत का ,मोहब्बत का बहुत-बहुत शुक्रिया
अपने दामन मे साजोने का मुझे बेहद शुक्रिया
अदना आदमी को बख्शी जो तुने इज्ज़त शुक्रिया .
चलो एक बात तो इस बात से पुख्ता हो गई
किसी के बगैर कोई भी नहीं मरता हैं जहाँ मे
रिश्ते खुदगर्जी की आवाज़ सुना करते हैं यहाँ
गैर हो जाते ही तल्खियां आ जाती हैं जुबां मे .