न तुम
मजबूर
थी,
न मैं मजबूर
था
रहा न दिल, दिल के पास,क्या कसूर था
गुलशन परस्त नज़रों को गुल कबूल नहीं
बेताब दिल में, प्यार का कैसा सुरूर था
कोई तो रहता था मेरे दिल के आस-पास
तुम नहीं, तो
कोई तुम
सा जरूर था
प्यार सौदागरी
नहीं,
इबादत है
ख़ुदा
की
तुम्हारे बेखबर दिल को, खबर जरूर था
रोता फ़िरता
हूं आज उस कूचे में, जहां
कभी गुलकारी करने का रहता गुरूर था