राम कहो कृष्ण कहों
राम कहो कृष्ण कहों ला इलाहा इल्लिलाह,                              
बुद्ध कहो या ईसा कहो ला इलाहा इल्लिलाह ।।                      
काबा में पूजो किंवा काशी में कोई फर्क नहीं पड़ता                
दिल में तुम झाँक कर देखो ला इलाहा इल्लिलाह।।                
आदमी का खून बहाने से कुछ हासिल नहीं होगा                     
इन्सानियत की पूजा करो ला इलाहा इल्लिलाह।।                   
रोते हुए इन्सां को ज़रा हंसा के दिखला दो                               
फक्र् से मुस्कराये खुदा ला इलाहा इल्लिलाह ।।                       
इन्सानियत हो तो सीना तान के तुम कह दो                           
पड़ौसी मेरा ईमान है ला इलाहा इल्लिलाह ।।                          
प्रेम की शाख पे यारों दिलों के फूल खिलते हैं                         
मीठी मीठी जुबान से बोलो ला इलाहा इल्लिलाह।।                
किसी मुफलिस की भूख से ज्यादा कुछ भी नहीं होता           
एक वक्त की रोटी दे दो ला इलाहा इल्लिलाह ।।  
Dr. Krishna Shankar Sonane      
 

 
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