शैदाई समझ कर जिसे था दिल में बसाया । कातिल था वही उसने मेरा कत्ल कराया ॥ दुनिया को दिखाने जो चला दर्द मैं अपने, हर घर में दिखा मुझको तो दुख दर्द का साया । किसको मैं सुनाऊँ ये तो मुश्किल है फसाना दुश्मन था वही मैने जिसे भाई बनाया । मैं कांप रहा हूँ कि वो किस फन से डसेगा, फिर आज है उसने मुझसे प्यार जताया । आकाश में उड़ता था मैं परवाज़ थी ऊँची, पर नोंच मुझे उसने जमीं पर है गिराया । गीतों में मेरे जिसने कभी खुद को था देखा, आवाज मेरी सुन के भी अनजान बताया । कांधे पे चढ़ा के उसे मंजिल थी दिखाई, मंजिल पे पहुँच उसने मुझे मार गिराया । शैदाई= चाहने वाला, पर = पंख, परवाज = उड़ान कवि कुलवंत सिंह
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