तुमको
जवां रात न कहूँ,तो और क्या कहूँ
हूर
को
हूर न कहूँ , तो और
क्या कहूँ
तुम्हारी ये आँखें
बड़ी कातिल
हैं सनम
इन्हें कातिल न
कहूँ, तो और
क्या कहूँ
हजारों दीये आरजुओं के एक संग बुझ गये
उसे
बेरहम न
कहूँ , तो और
क्या
कहूँ
जन्नते तसवीर
हो
तुम, मेरे
ख़्वाब की
तुमको
ख़ुदा
न कहूँ, तो
और क्या
कहूँ
अपनी
दुआओं का असर देख ली, मैंने उसे
बेवफ़ा
को बेवफ़ा न कहूँ, तो और क्या कहूँ
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