यूं तो मुझको कोई गम न था, क्यों याद तुम्हारी आती रही

कोई आग सी दिल में दबी-दबी, आहों की हवा सुलगाती रही




जब भी तेरा नाम सुनाई दिया, इस दुनियां की किसी महफिल में

कई दिन तक, फिर इन आंखों में, तस्वीर तेरी लहराती रही




छोड़ू ये शहर, तोड़ूं नाते, जोगी बन वन - वन फिरता रहूं

कहीं तो होगा विसाल तेरा, उम्मीद ये दिल सहलाती रही




कई बार मेरे संग हुआ ऐसा, कि सोते हुए मैं उठ बैठा

मैं तुमसे मिन्नतें करता रहा, तुम खामोश कदम चली जाती रहीं




तेरा मिलना और बिछड़ जाना, इक ख्वाब सा बनकर रह गया है

तेरे होने, न होने की जिरह, ता जिंदगी मुझे भरमाती रही
 

- राजेशा, भोपाल (म.प्र.)
 

 
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