नहीं चाहिये चाँद,चाँदनी रात, या कि निर्मथ गगन भी-

आज देश का व्योम प्रखरतम, है जलता दिनमान मांगता ।

आज देश का सीमांचल फ़िर,तुमसे है बलिदान माँगता ।

तार वीण के अभी न छेड़ो,बजने दो रणभेरी भीषण ,

नहीं रास के वेणु बनाओ,गहो करों में चक्र सुदर्शन,

अभी सुनाओ युग के अर्जुन को,तुम गीता कर्मयोग की-

नहीं ग्रीव के गीत चाहिये,देश जागरण गान माँगता ।

आज देश का सीमांचल फ़िर,तुमसे है बलिदान माँगता ।

 

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