भगवान अमीरों
का
ही
क्यों
जैसा कि हमें बचपन से
सिखाया और बताया जाता है, इस दुनिया को बनाने वाली एक शक्ति है, जिसे हम भगवान कहते
हैं । हम जितने भी छोटे- बड़े जीव – जंतु यहाँ देखते हैं, सबों को उसी ने बनाया हैं
। उसी ने सभी जीवों में प्राण रूपी जान को भरा है; वो अगर नहीं चाहें तो यह दुनिया
अभी का अभी प्राणरहित हो जाय । उसी की कृपा से हमें दो वक्त की रॊटी मिलती है । उसी
के शुभ आशीर्वाद से हम नीरोग रहकर खुशहाल जीवन व्यतीत करते हैं ।
मैं
भी इन सब बातों को मानती हूँ , अपने शास्त्रों का सम्मान करती हूँ । फ़िर भी एक
प्रश्न हमेशा मेरे दिल को अशांत किये रखता है । जब हम सब के पिता एक हैं, तो फ़िर
उसने अपने संतान में किसी को करोड़पति, किसी के पास फ़ूटी कौड़ी नहीं; ऐसा क्यों बनाया
? एक पिता को अपने संतान को गरीब बनाते वक्त दया क्यों नहीं आई ? ऐसा कौन सा अपराध
जनमने से पहले उस संतान ने किया, जो उसे नाले के कीड़े के समान जीवन जीने को बाध्य
किया । लोग चौरासी लाख जनम में विश्वास करते , तो करें । मुझे तो इसी एक जनम पर
भरोसा नहीं है । भरोसा हो भी तो कैसे ? जो लोग गरीब हैं, जिनके बच्चे दाने-दाने को
रटकते – रटकते मर जाते हैं ; समझ में नहीं आता, वे लोग नाले के कीड़े हैं या एक रोटी
के लिए छीना- झपटी करते हुए रास्ते के कुत्ते हैं । अब आप ही बताइये, इसे आदमी जनम
कहें या जानवर की; क्या कहें ?
मुझे तो ऐसा लगता है, जिस प्रकार किसी अमीर का रिश्तेदार अमीर होता है, गरीब
नहीं हो सकता; ठीक उसी तरह हमारे राम – कृष्ण , दोनों ही राजा थे । इसलिए उनके
सगे-संबंधी सभी अमीर होते हैं । गरीबों से राजा की कोई रिश्तेदारी नहीं होती । यही
कारण है कि भगवान गरीब को नहीं पहचानते । जब वे मनुष्य योनि में यहाँ आये, तब भी
बेचारे गरीब राज दरवार के करीब भी पाँव नहीं रख पाते थे । अगर किसी को यह सौभाग्य
मिलता भी था , तो पहले द्वारपाल के रहमो-करम से गुजरना पड़ता था । पर जो राजा-
महाराजा होते थे, उन्हें तो बस , भीतर राजमहल में एक खबर भिजवाने की देर रहती थी ।
राजमहल उनके स्वागत में खड़ा हो जाता था ।
आज जब भगवान मनुष्य रूप
को त्यागकर मूर्ति रूप में विराजमान हैं ; तब भी गरीबों के लिए उस तक पहुँचना
मुश्किल होता है । आप किसी मंदिर में जाइये । अमीर हैं; नामी- ग्रामी हैं तो कोई
बात नहीं – आपके स्वागत में द्वारपाल स्वरूप पंडित, ब्राह्मण सभी हाथ जोड़े खड़े हैं
। आपको भीतर ले जाकर भगवान से मुलाकात कराने के लिए । इसके लिए आपको कतार में खड़े
होने की कोई जरूरत नहीं । जितनी देर तक आपकी इच्छा हो , पूजा- पाठ, मंत्र-जाप
कीजिये । तब तक जो गरीब कतार में खड़े हैं
, वे आपके निकलने का ईंतजार करेंगे ; चाहे सुबह से शाम क्यों न हो जाय । मजाल क्या
कि बिना ब्राह्मण की आग्या के मंदिर में आप प्रवेश कर जायें । आपको धक्के मारकर
बाहर फ़ेंक दिया जायगा; आपके हाथ- पैर शरीर से अलग कर दिये जायेंगे । भगवान से मिलना
तब भी गरीबों के लिए मुश्किल था और आज भी मुश्किल है ।
मुझे बस इस बात पर भगवान से शिकायत है कि अगर तुम अपने बच्चों को एक नजर से
पालते, बड़े करते, एक जैसा प्यार देते; अपने स्नेह की गंगा में सभी बच्चों को बराबर
का स्नान करने की इजाजत देते—तो क्या, तुम्हारे बच्चे,कोई सोने के पलंग पर और किसी
को दो गज धरती नसीब नहीं , ऐसा होता क्या, कदापि नहीं । भगवान अपने बच्चों के साथ
सगा पिता कहलाकर सौतेला व्यवहार क्यों करता है ?
शास्त्र कहता है, सच्चे मन से अगर भगवान से कुछ माँगा जाये, तो अवश्य मिलता
है । तो क्या गरीब, अपनी गरीबी को दूर करने की भीख, भगवान से सच्चे मन से नहीं
माँगते हैं । दाने- दाने को तरसते बच्चे, रोग पीड़ित, असहाय गरीब, ’ हमें स्वस्थ कर
दो का रट, सच्चे दिल से भगवान के आगे नहीं लगाते हैं । क्या वे ऐसा सोचते हैं कि
सच्चे दिल से माँगने पर वह सब मिल जायगा, इसलिए दिल में खोंट रखकर माँगो , ताकि
हमारी दरिद्रता कभी दूर न हो ।’ ऐसा नहीं होता, भगवान से मिन्नतें करते –करते उनकी
जिह्वा घिस जाती है । किसी विरले का ही पुकार उस तक पहुँचता है । जब कि एक अरबपति
के पास इतने समय नहीं होते कि बार-बार एक चीज को माँगने भगवान के दरवार में जाये ।
वे तो अपने नियुक्त किये गये ब्राह्मण से कहलवाते हैं; फ़िर भी भगवान उसकी इच्छा को
पूरी करते हैं । बदले में चढावे के रूप में भगवान को हीरे का हार, सोने की मोटरकार,
जवाहरात के मोबाइल मिलते हैं । अर्थात जितना बड़ा आशीर्वाद, उतना बड़ा चढावा ।
दूसरी यह
बात मुझे झकझोड़ती रहती है, शास्त्र कहता है, जब-जब धरती पर अन्याय चरम सीमा पर
पहुँचा है; तब-तब भगवान, मनुष्य रूप में उस अन्यायी को दण्डित करने यहाँ आये है
। उदाहरण के लिए – दु:शासन द्वारा जब , द्रौपदी का चीर हरण हो रहा था; तब
द्रौपदी की एक पुकार पर कृष्ण उसकी लज्जा बचाने दौड़े चले आये थे । आज न जाने कितनी
ही द्रौपदी
का चीर हरण भगवान के मंदिर में होता है । क्या वह अबला भगवान से ’बचाओ-बचाओ’ की
गुहार नहीं लगाती हैं ? अवश्य लगाती हैं, पर भगवान का पास आने और बचाने की बात दूर,
वे तो सिंहासन पर से हिलते तक नहीं । हिलें भी तो कैसे ---
द्रौपदी उनकी सगी बहन थी, और अपनों का दर्द सबों को होता है । मगर एक गरीब द्रौपदी
भगवान की बहन कैसे हो सकती है ? अगर यह वाकया किसी उद्योगपति घराने की औरतों के साथ
हो, तो फ़िर देखिये, दिल्ली तक हिल जाता है । अर्थात अमीरों की रिश्तेदारी अमीरों से
चलती है । हमारे भगवान जब भी जनम लिए, राजघराने में जनम लिए । तो स्वाभाविक है कि
उनके रिश्तेदार भी अमीर होंगे ; पैसे वाले होंगे । इसलिए भगवान अमीरों के हैं ।