आज सुबह से मेरा मन काम में नहीं लग पा रहा था, वजह सिर्फ इतनी सी थी, कि मेरे स्कूल की शिकायत कर दी गयी थी, और वो भी मिनिस्टर से । उसी शिकायत के सिलसिले में जाँच करने डी.ई.ओ. आ रहा था । इत्तिला लेकर परसों चपरासी आया था और मुझे सावधान कर गया था - माट साहब, तनिक संभल के रहियो । डी.ओ. क़डक आदमी है । स्कूल के लाने साफ-सूफ करा लीजियो । रजिस्टर-वजिस्टर ठीक-ठाक कर लीजियो । जिन दिनान में प.ढावे नाय आए होओ, उनकी दरखास रख दीजो । शिकात कछू जादा ही तग़डी भई है कै जौ स्कूल एक महीना से बंद पडौ है मास्टर प.ढावे नहीं आयो ।
सुनकर मेरा मन क़डवा हो गया था । कुर्सियों पर बैठकर हुकुम चलाने वाले ये लोग आखिर स्कूल के मामले में क्या समझते हैं ? एक हफ्ते भी अगर गांव में आकर प.ढाना प.डे, तो नानी याद आ जाए सब की । एस.डी.एम. हो या कलेक्टर, सबसे पहले स्कूल की पूछेगा - मास्टर आता है ? प.ढाई होती है ? रिजल्ट कैसा है ? किसी को इसकी चिंता नहीं है कि स्कूल सरपंच की दालान में लगता है, इमारत नहीं है । स्कूल में ब्लैक बोर्ड नहीं है ? बच्चों को बैठने के लिये टाटपट्टी भी मुहैया नहीं, यह कोई नहीं पूछता। हर आदमी मास्टर पर चड्डी गांठता आएगा । मिनिस्टर आएंगे सो पूछेंगे - गांव में स्कूल है या नहीं ? नहीं है तो खुलवा देंगे । जैसे स्कूल न हुआ, शक्कर की दुकान हो गई, हर जगह खुलवा देंगे । अरे भाई ये तो देखो कि गांव में इतने बच्चे हैं भी या नहीं कि स्कूल चल सके, गांव के लोगों की दशा ऐसी है या नहीं कि बच्चों को काम से छु.डाकर प.ढने भेजें ।
स्कूल.................स्कूल................स्कूल..........। देर तक ऐसा ही बवंडर उठता रहा था मेरे मन में ।
ये मौका ही नहीं आता, अगर पुराने अध्यापक की तरह मैं भी पटेल के छोरा को रोज शाम को एक घंटा प.ढा दिया करता । लेकिन बिना बात क्यों किसी की लल्लो-चप्पो की जाए ? क्यों प.ढाऊँ मैं पटेल के बच्चे को ? उसे प.ढना है, तो स्कूल में आए । फट्टी साथ लाये और सबके मटके में से पानी पिये । किसी लाट साहब का ल.डका तो है नहीं, जो हवेली से बाहर निकलते ही पैर छन जावेंगे ।
मुझे तबादले पर यहाँ आए आठ दिन ही हुए थे, कि पटेल का हलवाहा नवें दिन सुबह ही आ धमका - ‘माट साहब, पटेल दद्दा बुला रहे हैं ।
‘क्या काम है ? मुझे अचरज हुआ ।
‘ काम-धाम तो हमें पतो नई, पे तुम्हें तुरंतई आवे की कही हैं । धृष्टतापूर्वक मुस्कराता हुआ हलवाहा बोला था ।
‘पटेल साब से कहना कि मै स्कूल जा रहा हूँ काम हो तो वे वहीं आ जायें ‘ कहता हुआ मैं कोठरी का दरवाजा लगाकर स्कूल चलता बना ।
पटेल साब को यह बात नागवार गुजरी थी । दोपहर को स्कूल के पास से गुजरते हुए वे रूक गये थे और मेरा प.ढाना देखने लगे थे । छःमाही परीक्षा नजदीक थी, मैंने कल जो पाठ याद करने को दिया था सुन रहा था, याद नहीं करने वालों को दण्डित भी कर रहा था ।
‘राम.............राम............राम.........फूल से बच्चों को ऐसे न मारो मास्टर साब, बेचारे अबोध हैं ये तो। जबरदस्ती मेरे अध्यापन में टांग अडाता पटेल दिमान सिंह निकट चला आया था ।
‘पटेल साब मेरे प.ढाने का अपना तरीका है, कृपया आप इसमें दखल न दें । आप तो मेरे लायक काम बताइये । मैनें रोष व्यक्त किया ।
‘काम-धाम कछु नहीं है मास्टर साब । हमारे छोटे लल्लू को संजा बजे प.ढावे आ जाय करो। पीछले मास्टर साब ब.डे भले आदमी थे, रोजीना आय जाते थे, फिर उधई चाय-वाय पीत हते ।
‘पटेल साब मैं सरकारी नौकर हूँ और टयूशनबाजी का कतई विरोधी हूँ । इसीलिये सॉरी । मैं वहाँ नहीं आ सकूंगा । बच्चे को यहीं भेज दीजिये ।
‘अरे टूसन के लाने कौन कह रहा है ।
‘बिना टूसन के भी मै नहीं आ सकूंगा । कहता हुआ मैं बच्चों से मुखातिब हो गया था हां चिन्तामणि सुनाओ - नौ का पहा.डा ।
पटेल फुफकारता सा चला गया था और उस दिन से गांव में आने वाले हर मुलाजिम से मेरी बुराई करता रहा था, जिनमें से आकर कुछ तो मुझे समझाते थे कि सांझ को थो.डा टाइम निकालने में क्या हर्ज है ? पटेल के पास तो सबकी नस दबी रहती है, और फिर वह तो इलाके के मिनिस्टर के भी मुंह लगा है । कभी भी कुछ ऊँच-नीच करा देगा। पैसे वाला है, छः हल की खेती होती है । केस-मुकदमा में ही उलझा दे, क्या भरोसा ? पुराने पटवारी पर जालसाजी और फौजदारी के दो मुकदमा लाद दिये थे, बिचारा तबादला कराके भाग गया । वैसे पटेल दिल का अच्छा है, जो आदमी उसके पास आता-जाता है, उसकी मदद वह भोपाल तक जाकर करता है ।
मैंने झुंझलाकर जवाब दिया था - ‘जाओ आप लोग ही उसकी चापलूसी करते रहो, मुझे इन सब बातों की फुरसत नहीं है, साला अंगूठा-टेक हम पर हुकुम चलायेगा ।
उस रात देर तक नींद नहीं आई थी, सोचता रहा था, कि शिक्षा विभाग का अध्यापक इतना गरीब क्यों है हर आदमी उस पर लदने को तैयार है । कम प.ढे-लिखे पटवारी और निरक्षर कोटवार से भी गांव के लोग थो.डा झेंपते हैं लेकिन अध्यापक को तो बच्चे भी चि.ढाने का मौका नहीं छो.डते । काश सरकार अध्यापक को गांव में इतना सा अधिकार दे दे कि ग्राम न्यायालय का न्यायाधीश पदेन रूप से अध्यापक ही होगा । गांव के झग़डों-टंटों को निपटाने-सुलझाने का और पुलिस में रपट दर्ज कराने का काम केवल अध्यापक के पास सुरक्षित रहे, फिर देखो कैसी तूती बोलती है, अध्यापकों की । लेकिन सरकार ऐसा करेगी कैसे ? न तो ये नेताओं से संबंधित मसला है न ही आम आदमी से ताल्लुक रखता है । सरकार तो केवल इन दोनों की ही हक महफूजियत करती है न । कर्मचारी तो हमेशा ही दोषी रहा है ।
मुझे याद है, एक ब.डे साप्ताहिक पत्र में छपा था, कि इन्टीरियर में अनेक गांव ऐसे हैं जिनमें आजादी से आज तक, कोई मिनिस्टर तो दूर रहा, कलेक्टर और तहसीलदार तक नहीं पहुंचा । यह बात तो मेरे अपने ही जिले की है, कि इतिहास में पहली दफा एम.एल.ए. के गाँव पधारने पर उसका स्वागत ग्राम ललनाओं ने दूध-दही के कलशों से किया था । मेरा यह गांव ऐसा नहीं है । यहाँ नेतागण प्रायः आते रहते हैं । यही तो समस्या है हम ग्रामीण कर्मचारियों की क्योंकि हर बार कुछ न कुछ समस्यायें बो जाते हैं ।
देर रात जाकर मेरी नींद लगी उस दिन ।संयोग से अगले माह ही पटेल के भाई के यहाँ शादी थी, तीन दिन पहले से गांव में पदस्थ सारा अमला - पटवारी, कोटवार, पंचायत सचिव, ग्राम सेवक और ग्राम सहायक - पटेल के यहाँ काम कराने में जुट गया था । केवल मैं ही बचा था । मैं न भोजन करने पटेल के यहां पहुंचा, न ही किसी काम में हाथ बंटाने का आफर ही मैंने किया ।
मैं हेक़डबाज नहीं हूं, न ही मुझे गांव वालों से नफरत या घिन है, मैंने जानबूझकर अपना तबादला गांव कराया है, मैं तो इन नये हुक्मरानों से चि.ढता हूं जिनके इशारे पर सरकारी कारिंदे और गांव के लोग हगने-मूतने तक के मोहताज हो जाते हैं ।
मैं पांचवें दशक का सिद्घांतवादी भी नहीं हूं । ठीक है डी.ई.ओ. आ रहा है आने दो । सब बच्चे, पालक और सत्य मेरे पक्ष में है झूठ खुद रफा-दफा हो जायेगा । आखिर पटेल ने शिकायत किस आधार पर की है कि स्कूल एक माह से नही लगा । हर माह के हाजिरी रजिस्टर में मौजूद खुद उसके दस्तखत सच्चे साक्षी हैं सौ बका और एक लिक्खा ।
मैंने सुबह ही स्कूल की दालान झाडू। से झा.ड ली है, पुताई तो बरसों से इस इमारत की नहीं हुई, फिर भी दीवारों के जाले झौंसे निकाल दिये हैं । बच्चों को धुले-कप.डे पहन कर आने को परसों ही कह दिया था । परसों शनिवार था और मुझे याद है, जब मैंने कहा था कि परसों डी.ओ. साहब आ रहे हैं, तो बच्चे उचक कर गा उठे थे -
आज की छुट्टी कल इतवार ।
परसों आरये डिप्टी साब ।
डिप्टी साहब नही आ रहे है, खुद डी.ओ. आ रहे हैं । डिप्टी मिनिस्टर - तो प.डौस के गांव में आए थे और उनके ही फोला तो आज फूट रहे हैं । मैंने सोचा था और मुंह पर अनायास तिक्तता उभर आई थी इन नेताओं के लिये । पटेल ने डिप्टी मिनिस्टर से ही तो मेरी शिकायत की थी, उसी जांच के लिये डी.ई.ओ. आ रहा है । मैं कित्ता भी सही होऊँ पर तनाव तो हो ही रहा है ।मुझे याद है, कॉलेज के दिनों में एक बार मैंने ह.डताल में भाग लिया था और मेरा नाम पुुलिस रिकार्ड में दर्ज हो गया था एक ह.डताली के रूप में । जब मेरी नौकरी लगी तो पुलिस से चरित्र का सत्यापन कराया गया था और केवल उस रिकॉर्ड की वजह से खामख्वाह पांच सौ की दच्च लग गई थी । तब नाम कट पाया था । इधर नेता लोगों को देखो, शान से चुनाव में ख़डे हो जायेंगे और जीतें या हारें इनके चरित्र का पुुछैया भारतवर्ष में कोई नहीं है । कितने ही ब.डे पद पर चुने जायें, पुलिस रिकार्ड या कोर्ट केस का सवाल ही नहीं उठता और हम हैं कि चपरासी बनने के बाद भी पुलिस से चरित्र-सत्यापन कराया जायेगा । जिस संविधान की ये नेता लोग शपथ लेंगे, मौका प.डने पर उसी संविधान का अपमान करने से भी नहीं हिचकिचायेंगे और हमको सिविल सेवा आचरण नियम की बे.डियां प.डी हैं ।
दस बज चुके हैं, सूरज सिर के ऊपर है । खो.डों में घरों की स्त्रियां गोबर लेकर आ गई हैं, और उसके उपले बनाने की द्यथप-थप आवाज यहां तक आ रही है । बच्चों ने बछेरे खोल लिये हैं और स्कूल के इर्द-गिर्द चराते हुये हे-ओ, हे-ओ और ढे-ढे की आवाज लगाकर उन्हें नियंत्रित कर रहे हैं । दूर तक जाती हुई पगडंडी नजर आ रही है, जो सूनी प.डी है । पटेल का ल.डका सुबह से ही टे्रक्टर लेकर निकल गया है, वही डी.ई.ओ. साहब को बैठा के लायेगा । रास्ते में मेरे बारे में भरेगा ...........मेरा मन फिर घूमने लगता है, अज्ञात भय और आशंकाओं के इर्द-गिर्द ।
आज सुबह भीमा आया था और देर तक ख़डा रहा था, वहां स्कूल के पास । मैं सफाई कर रहा था और वह धूर्तता से मुस्करा रहा था । कहते हैं इसने दिमान सिंह के कहने पर एक कतल किया है और दिमान पटेल ने इसे साफ बचा लिया है, इसलिये अपने आपको तीस मार खां मानता है । पटेल का पाला हुआ गुण्डा है । आते-जाते मुझ पर भी कई दफा कमेंट कर चुका है । मैं इसके मुंह नहीं लगता हूँ । गांव में सब पटेल के हैं, सिर्फ मलेरिया इंस्पेक्टर मुझसे प्रभावित है और वह हर बार मेरे पास जरूर रूकता है । उसी ने इसका इतिहास बताया था । गांव में वह हफ्ते में एक चक्कर लगा जाता है । वह डी.एस.ई. का रिश्तेदार है । केवल वही अकेला मेरे पक्ष में है और सब सरकारी कर्मचारी पटेल के पक्ष में हैं ।
कल मैं पूरे गांव में घूमता रहा था और हर आदमी से मैंने बेध.डक हो एक ही सवाल पूछा था कि क्या वे मेरे प.ढाने से संतुष्ट हैं ? क्या मेरे आने के बाद स्कूल में ज्यादा प.ढाई नहीं होने लगी ? क्या मेरे प.ढाये बच्चे ज्यादा संस्कारवान नहीं हैं और यह भी कि क्या मैं गांव से चला जाऊँ ? मेरी बात के जवाब में हर गांव वासी ने छाती ठोक कर कहा था कि मेरे जैसा मेहनती अध्यापक इस गांव में कभी नहीं आया । अगर जरूरत प.डी तो वे गांव वाले दुनिया के किसी भी अफसर अहलकार के सामने छाती ठोककर यह बात कहने तैयार है।
यहां तक कि मेरी डयूटी न होने के बावजूद मैंने जो प्रो.ढ शिक्षा की कक्षाएं रातों को इस गांव में चलाईं इससे प्रभावित हुईं ब.डी-बू.ढी स्त्रियां भी संकोच त्याग कर मेरे पक्ष में बात करने को तैयार हो गईं थीं ।
मैं बाद में दलितों के मुहल्ले में भी गया । वहां मेरी शिकायत की खबर पहले से ही पहुंच चुकी थी । वे सब खुद बैठकर मंसूबा बांध रहे थे कि कल आने वाले डी.ई.ओ. के सामने कैसे मास्टर का पक्ष लिया जाये । दरअसल मैंने आते ही स्कूल में जारी बरसों पुरानी वह परम्परा नष्ट कर दी थी जो कि दलित बच्चों के मन में हीनता बोध पैदा करती है । पहले बेचारे उन निरीह बच्चों को टाट पट्टी पर बैठना भी मना था और स्कूल के मटके में से पानी लेना भी मना था । मैंने यह मनाही खत्म कर दी । हालांकि पटेल जैसे और भी कई लोगों ने इस बात का विरोध किया था लेकिन मैंने उन लोगों को समझाया था कि आप ही बतायें आप के बच्चों में इन बच्चों में किस बात का फर्क है । तन से और मन से नाजुक ये अबोध बच्चे हम ब.डों की दुनिया के भेदभाव अभी से क्यों जानने लगें । अभी तो इन्हें खुलकर प.ढने और खेलने दीजिये । मेरी बात से वे सब सहमत हो गये थे । क्योंकि ना मैं दलित बच्चों पर कोई एहसान कर रहा था और ना गांव वाले, सो बात सच्ची थी ।
दलितों के मुहल्ले में मेरे पक्ष में एक लिखित ज्ञापन भी तैयार हो रहा था । मैंने वह मजमून प.ढा और लगा कि यह मेरी अब तक की इस गांव की सेवा का सबसे ब.डा पुरस्कार है । कल पूरे गांव ने और खासकर दलितों ने तय किया था कि वे डी.ई.ओ. के आते ही स्कूल के मैदान में इकट्ठे हो जायेंगे और भले ही अफसर कुछ न पूछे वे लोग अपनी तरफ से मेरे बारे में अपनी बात प्रमाण सहित रखेंगे ।
मुझे विश्वास है कि आखिर में सत्य की जीत होगी । इंस्पेक्शन में कुछ भी हो, कागजी खानापूतर्िे के बाद फैसला मेरे पक्ष में ही जायेगा । ए.डी.आई. से मैंने बात पक्की कर ली है - ठीक है, निपटेंगे आज सुबह ही मैंने मलेरिया इंसपेक्टर को भेजकर डी.एस.ई. से लिखवाकर सिफारिशी चिट्ठी ले ली थी, वह मेरे जेब में है । मै आश्वस्त हूं बंदोबस्त पक्का है ।
दूर से टे्रक्टर की आवाज आई, तो मैं उठा हूँ और उधर ताकने लगा हूँ, डी.ई.ओ. ही हैं जेब में रखी चिट्ठी को तौल कर मैं भि.डन्त को तैयार हूँ ।
उधर हाकिम के आने के इन्तजार में बैठा दलित मोहल्ले का बू.ढा काका परबतिया अपने मोहल्ले के लोगों को बुलाने तेज गति से चल प.डा था । मैं मन ही मन कुशल मना रहा था कि आज सब कुछ ठीक-ठाक ही निपट जाये, न अफसर के सम्मान में कमी आये और न मेरा कुछ बिग़ड पाये ।
जो भी हो अपने हक के लिए भि.डन्त तो करना ही है ।

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