संतोष
धन
’जब आये संतोष धन, सब धन धूरि समान’, यह उक्ति तो सचमुच अकाट्य है, लेकिन यह
संतोष धन कभी किसी के पास आता भी है क्या । मेरी समझ से तो नहीं । अगर आता होता, तो
इस दुनिया में, साधु – संत तक निराशा की जिंदगी नहीं जीते । एक रोटी और एक भगोटी
बहुत होता । लेकिन नहीं, एक रोटी, एक लंगोटी अब साधु – सन्यासियों की नहीं रही ।
उन्हें चाहिये, गाड़ी – बंगला, एक बड़ा मठ, नौकर – चाकर; अर्थात , जहाँ सबसे पहले
संतोष को आना चाहिए था, संतोष , अभी तक वहाँ भी नहीं पहुँच पाया है । आम आदमी की तो
बात ही छोड़िये । वे तो जनमते ही जिंदगी से असंतुष्टता की शिकायत शुरू कर देते हैं ।
आम आदमी को बाद देकर आप एक राजा को लीजिए । खजाने सोने, चाँदी, जवाहरात से भरे रहने
के बावजूद , दूसरे राज्य पर चढाई कर, धन लूट लाने की बात नहीं छोड़ते । मैं इसी
संदर्भ में एक असन्तुष्ट राजा की कहानी बताती हूँ ।
एक दिन वह अपने खजाने का मुआइना करने गया । खजाने में सोने – चाँदी भरा
देखकर अपने सैनिक से खुश होकर कहा, ’सैनिक ! इस खजाने में जितना धन है, इन्हें
देखकर क्या तुमको लगता है कि इससे मेरी पीढ़ी दर पीढ़ी सुख की जिंदगी बिता सकेगी ।
उन्हें कभी धन की कमी नहीं होगी ।’ सैनिक कुछ देर तक खजाने को निहारा,फ़िर बोला, ’
महाराज ! यह सिर्फ़ सात पीढ़ियों के लिए है । आठवीं पीढ़ी को धन का अभाव भोगना होगा ।
यह सुनकर राजा बहुत दुखी हुए और रात – दिन इसी चिंता में रहने लगे , ’मेरी आठवीं
पीढ़ी का क्या होगा । वे धन के अभाव में कैसे जीयेंगे ।’ इसी चिंता में राजा की
आँखों की नींद उड़ गई । रात – दिन आँखें बंद कर बस आठवीं पीढ़ी का क्या होगा? , यही
सोचने लगे । ऐसा करने से राजा की धीरे – धीरे तबीयत बिगड़ने लगी । राजा को इस प्रकार
बीमार पड़ा देख राज्य के लोग चिंतित हो उठे । आखिर इसका इलाज क्या है ? तभी एक
दरबारी ने कहा,’ राजा की चिंता दूर करने का एक उपाय सूझा है । अगर हम वैसा करें तो
हमारे महाराज स्वस्थ हो जायेंगे । सुनकर दरबारियों ने कहा,तो फ़िर देरी किस बात की,
इलाज शुरू किया जाय । दरबारी ने कहा, इसके लिए महाराज को महल के बाहर गंगा के तट पर
ले जाना होगा । सुनकर सभी दरबारियों ने एक साथ हो सहमति जताई और राजा कोगंगा के तट
पर ले जाने की तैयारी शुरू कर दी । दूसरे दिन राजा की पालकी गंगा तट पर पहुँची ।
दरबारियों ने राजा से अनुरोध किया कि गंगा तट पर जो
वृक्ष है , उस पर बैठा आदमी गाना गा रह है ; उससे पूछें कि वह इतना खुश क्यों है ।
राजा ने पूछा,’ सुनो, तुम तो दीखते गरीब हो । तुम्हारे पास कपड़े नहीं हैं, घर नहीं
है, रुपये – पैसे भी
नहीं हैं; तो फ़िर इतना खुशी जीवन कैसे बिताते हो ?’ आदमी ने कहा,’ आपने बिल्कुल ठीक
कहा । महाराज ! ये मेरे पास नहीं हैं पर मेरे पास संतोष है । आपके पास सब कुछ रहते
हुए भी संतोष नहीं है । यही कारण है कि आप राजा होकर भी इतने चिंतित जीवन व्यतीत कर
रहे हैं ,और मैं खुश होकर जी रहा हूँ ।’ तब राजा की अंतर आत्मा की आँखें खुलीं और
सोचने लगा, ’ यह आदमी , सचमुच मुझसे ज्यादा भाग्यशाली है ; जो जी भरकर हँसता – गाता
हुआ जिंदगी बिता रहा है और एक मैं हूँ कि खजाना लबालब भरा रहने के बावजूद चिंतित
जीवन जीता हूँ । इस आदमी को देखकर यह उक्ति कितनी ठीक बैठती है,’ जब आये संतोष धन,
सब धन धूरि समान ।’