न पूछो
इस ठण्ड में
हम क्या क्या किया करते थे
कड़े मीठे अमरुद
हम ठेले से छटा करते थे
सूरज जब कोहरा ओढ़ सोता था
हम सहेलियों संग
पिकनिक मनाया करते थे
छत पे लेट
गुन गुनी धूप लपेट
नमक संग मोम्फाली खाया करते थे
धूप से रहती थी कुछ यूँ यारी
के जाती थी धूप जिधर
उधर ही चटाई खिसकाया करते थे
ठंडी रजाई का गरम कोना
ले ले बहन तो
बस झगडा किया करते थे
एसे में माँ कह दे कोई काम तो
बस मुहँ बनाया करते थे
गरम कुरकुरे से बैठे हों सब
एसे में दरवाजे की दस्तक
कौन खोले उठ के
एक दुसरे का मुहँ देखा करते थे
लद के कपडों से
जब घर से निकला करते थे
मुहँ से बनते थे छल्ले
सिगरेट पीने का भी अभिनय
किया करते थे
जल जाए अंगीठी कभी तो
घर के सारे काम
मनो ठप पड़ जाते थे
सभी उसके आस पास जमा हो
गप लड़ाया करते थे
अपनी ओर की आंच
बढे कैसे ये जतन किया करते थे
न पूछो
इस कडाके की ठण्ड में
हम क्या क्या किया करते थे
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अहसान सा गुजरता है
कुछ शब्द मेरे तकिये तले धरता है
उन्हीं के सहारे
यादों की सिकुडी चादर को
हौले से बिखराती हूँ
कई सपने सामने खड़े हो
आँखों में ऑंखें डाल पूछते हैं
मेरी हत्या क्यों की ?
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हवा की छुअन में है रोमांस
बारिश की बूंद में है रोमांस
माटी की सोंधी खुशबु
तेरे छुअन की तरंग में है रोमांस
चख के चाय का प्याला
माँ जो देती पिता जी को
उस एक घूँट में है रोमांस
टुटा तो बाबा का दंत सेट
दादी ने अपना दे दिया
खुद दाल में मीच के रोटी खाई
उस दाल रोटी में है रोमांस
उनके कदम थाप से
जान गई मन का हाल
शब्दों के फाये जो हाथों पे रखे
जिस नजर से देखा उसने
उस में है रोमांस
शब्द नहीं भाषा नहीं
जाती नहीं धर्म नहीं
उससे परे जो हो महसूस
वो है रोमांस