ऐ नौजवां तू इक अलग पहचान बन के चल,
जो भर दे जोश मुर्दों में वो जान बन के चल!
हर तरफ दिखने लगी मायावी इमारतें,
ढह जाए इक पल में सब,वो तूफान बन के चल!
दूर कर सदियों बनी ये मज़हब की कड़वाहट ,
तू खुद कभी 'गीता' ,कभी 'क़ुरान' ,बन के चल!
माँ बाप की बेटों से अब ख्वाहिश ही ना रही,
तू हर माँ-बाप के दिल का अरमान बन के चल!
रूठ जाए तुझसे तेरा मुक़दर भी तो क्या?
तू खुद ही हर मंज़िल का आह्वान बन के चल!
ना मंदिर, ना मस्ज़िद, ना गिरजाघर कभी बनना,
बनना चाहो गर कभी कुछ, तो खुला आसमान बन के चल
किताबों में ना सिमट जाए ,हो ऐसी जिंदगी तेरी,
इतिहास भी ना लिख पाए कभी, वो दास्तान बन के चल|
हर पलकें बिछी हो राह में आने के तेरे,
तू हर दिल अज़ीज ऐसा मेहमान बन के चल!
ऐ नौजवां तू इक अलग पहचान बन के चल |
जो भर दे जोश मुर्दों में वो जान बन के चल||
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