दोहा:- महाशाप अवगुण सदा, एड्स रोग भयवान।
पकड़ मौत निश्चित करें, नहि जिससे कल्याण।।

सतोगुणी नर की जयकारा। निन्दउ पतिव्रत हीन अचारा।।
निज पत्नी नहि रास रचैया। निन्दा उनकी हरदम भैया।।
ओ कुत्सित मन के अनुरोधा। उनके जीवन विविध विरोधा।।
जिनके मन नहि शुद्ध आचरणा। विविध रोग के है निज वरणा।।
नही समर्पण जिनके मनहीं। दुःखी रहे वह हर छन-छनही।।
निज स्वामी अनुरक्त बनाओ। हे प्रभु मम वह बुद्धि दिखाओ।।
सरवा सत्य यह बातहि जानो। सदा समर्पण को मन मानो।।
होइ अगर आचरण विहीना। मिले सदा दुःख नवल नवीना।।
एड्स रोग पहिले नहि आवा। भाॅति भाॅति लक्षण दिखलावा।।
तन कमजोर करे हर भाॅती। चिन्तित जन मन हर दिन राती।।
दर्द पैर नहि दूर है होता। होत रात जन लगता रोता।।
मेरू रज्जु बहु पीड़ा होती। निकल गयी ताकत की मोती।।
चर्म रोग फुंसी अरू छाले। भाॅति भाॅति दिखते बहु बाले।।
वैद्य पड़ा असमंजस भाई। ठीक नही कर सकी दवाई।।
लोग न जाने चिन्ता होई। घुट घुट कहता मन यह रोई।।
बीबी जान न जाय बीमारी। छूटेगी सब रिश्तेदारी।।
दस्त होइ जब बारम्बारा। तेज हरण मुख हुआ छुआरा।।
गाल पिचक बन गए छुआरू। विपद् दशा प्रभु आप उबारू।।
बदन ताप नित ही दिख जाहीं। भूख मरी मन इच्छा नाहीं।।
गलत कर्म कैसे बतलाऊॅ। चिन्ता बस कैसे बच पाऊॅ।।
हे भगवान करो कल्याणा। गलती मैने अपनी माना।।
सर्दी खाॅसी बहुत सताई। हाल चाल नहि पूछे भाई।।
भाॅति भाॅति जन बात बनावा। दूर दूर सब हंसी उड़ावा।।
बीबी पुत्र न आवहि पासा। व्यंग्य बात करते बहु हांसा।।
हे बलनाशक तेज हरावा। भाॅति भाॅति के रूप देखावा।।
तुम नर को अति नीच बनावा। चाल कुचालि बहुत दिखलावा।।
जिन पर रोग एड्स की होई। दूर उन्हे नहि करना कोई।।
प्रेम उन्हंे भरपूर दिलाना। सेवा विविध भाॅति करवाना।।
तड़प रहे जीवन हित प्यारे। वे तो है विपदा के मारे।।
नहिं होता यह हाथ मिलाई। तुम सिरिंज नित बदलो भाई।।
खून जाॅच करके चढ़वाओ। लगे नोट उस पर पढ़वाओ।।
गलत कर्म नहि कर भूपाला। सुख सज्जित रह करो नेवाला।।
जो पत्नी पति व्रत अनुरागी। रहै सदा सुखरस रसपागी।।
जो पति पत्नी व्रत अनुरागा। कुशल रहे नित वही सुभागा।।
कुलनाशी जो नर अरू नारी। पकडे़ उनको एड्स बीमारी।।
भारत के तुम भरत सपूता। रहैं सदा तोहि में बहु बूता।।
भारतीय संस्कृति अपनाना। गाओ नित्य सुखद नित गाना।।
अस हनुमन्त बाल ब्रह्मचारी। तेज कीर्ति गावे नर नारी।।
कहत ‘नन्द’ मति मन्द विचारी। सुखी भवन निज सब परिवारी।।
मेरा यह संदेश बताना। सदा समर्पण सब अपनाना।।

दोहा - हो भारत के वंश तुम, तुम हो देव समान।
एड्सहीन जग को करो, करो जगत कल्याण।।

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