अनुभूति           --- सुमित्रानंदन पंत  

 

       तुम आती हो,

       नव अंगों का

 

शाश्वत मधु विभव लुटाती हो !

बजते नि:स्वर नूपुर छम छम,

साँसों  में थमता स्पंदन क्रम,

      तुम आती हो,

      अंतस्तल  में

शोभा ज्वाला लिपटाती हो !

 

अपलक रह जाते  मनोनयन,

कह पाते मर्म कथा न वयन,

      तुम आती हो,

      तंद्रिल मन में

स्वप्नों के मुकुल खिलाती हो !

अभिमान अश्रु बनता झर झर

अवसाद मुखर रस का निर्झर,

      तुम आती हो,

      आनंद शिखर

प्राणों में ज्वार उठाती हो !

 

स्वर्णिम प्रकाश में गलता तम,

स्वर्गिक प्रतीति में धलता भ्रम,

      तुम आती  हो,

      जीवन पथ पर

सौन्दर्य रहस बरसाती हो !

जगता छाया वन में मर्मर,

कँप उठती रुद्ध स्पृहा थर, थर,

      तुम आती हो,

      उर  तंत्री  में

स्वर मधुर व्यथा भर जाती हो !

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