सामने दीवार पर
टंगी तस्वीर को देखकर
एक बच्चा चकराया-
काफी दिमाग लगाने के बाद भी
उसकी समझ में कुछ न आया;
तब-
सामने से जाते हुए सज्जन को
दौड़कर बुलायाऔर-
उनसे यंू फरमाया
अरे भइया! वह देखों-
मुझे नहीं है कुछ सूझा,
हां कुछ जोंके लिपटी हुई हैं
चूस रही हैं खून
इसमे बनी किसी आकृति का
वो आकृति भी सहमी सी लग रही है ;
मानो कि-
अपने ही बेटों से लुटकर चीत्कार कर रही हौ
लगता है ऐसाकि-
उसके सभी बेटे,
अपना-अपना भाग्य नोंच रहे हैं
स्वार्थ पूर्ति के नये-नये रास्ते खोज रहे हैं
बच्चे की बातें सुनकर
उस सज्जन का दिमाग चकराया
देखा-
जब उसने उठाकर चेहरा
तस्वीर पर ध्यान लगाया
कुछसोचा और बोला-
रे बालक! यह तस्वीर कहीं और की नहीं
तेरे देश की है
जिसे देखकर आभास होता है,
कुछ लोगों के द्वारा
इसको नोचने का,
सिर्फ-
अपने तुच्छ स्वार्थ के लिए
क्षेत्र, भाषा,धर्म, संप्रदाय, जाति,हत्या,आतंक आदि के
रथों पर आरूढ़ होकर ।
इतना कहकर वह सज्जन चला गया
लेकिन-
उस बच्चे के मस्तिष्क में
अनेक अनुत्तरित प्रश्न छोंड़ गया,
उसे-
अपने भावी भविष्य के सम्बन्ध में
सोचने के लिए
कत्र्तव्य पालन के लिए
विवश कर गया।

 

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