अस्तित्व
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बरखा की बूँद
सा
अस्तित्व
हमारा
बादल
से निकलने के
बाद
मन मे
थोड़ा आको्श
साथ नई दुनिया
के सपने
संग भय भी
साथ था हवाओं
का
बदल की गरज का
सहारा
बिजली मे
नहाती
लजाती
धरती मिलन को
बूँद चली
पर क्या पता
था
ये दुल्हन
सब कुछ खो
देगी
अपना मान
सम्मान
सोचने का
अधिकार भी
यहाँ तक की
उसका अपना
अस्तित्व
ही न होगा
केवल कुछ छड़
ये रहेगी
बाद उसके
केवल धरती
रहिगी
निशान तक न
होगा इसका
इन सब बातों
से बेखबर
या
जान के अंजान
पुनः धरती तक
आने को तैयार
एक और बूँद
होंगी
रचना
"Rachana Srivastava" <rach_anvi@yahoo.com>