“भूकम्प, घर और हम”
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पुरातन काल से इस धरा पर
अनगिनत भूकम्प
आते रहे हैं
जो हमें भरपूर नुकसान
पहुँचाते रहे हैं
पर विडम्बना देखिये
हम अधिकतर घर
कमजोर बनाते रहे हैं……..
भूकम्प जन्म लेता है
धरा की सतही प्लेटों के सरकने से
गर्भ में उत्पन्न आन्तरिक हलचल से
हम भी हैं उपजते कुछ इसी तरह
विवेक-शून्य वातावरण में
अधिकतर सुखानुभूति के
अहसासों के मचलने से…….
इतिहास गवाह है
भूकम्प ने किसी को नहीं बख़्शा
कोई कमजोर घर नहीं छोडा
पर हम तो चार कदम
और आगे निकले
हमने भी किसको छोडा
अपनों तक से नाता तोडा…….
तन्यता, लचीलापन और दृढ़ता
तथा मजबूत बन्ध को अपनाकर
भवन बन जाता है
सदैव के लिये भूकम्परोधी
काश हम भी अपना पाते
इन सदगुणों को
प्रयोग कर पाते
विश्वास रूपी ईंटें
दृढ़ता रूपी सीमेन्ट
सौम्यता की रेत
स्नेह से बना गारा
और आत्मबल रूपी लोहा
तो किसी भी तीव्रता के मापांक पर
हमारा घर और हम
हमेशा ठहरते भूकम्परोधी……..