छप्पन कविताएं

कारोबारी ने दुकान सजाई है

घटतौली में की खूब कमाई है।

पैसे वालों की यह दुनिया

पैसे की खनक पर हर अंगड़ाई है।

ओढ़ फकीरी चौला, दे दे मेरे मौला

पैसे ने बड़े-बड़ों से भीख मंगवाई है।

लेखक हुए जुगाड़ू, पत्रकार रगड़ालू

बे सब्र कवि ने भी कर डाली चतुराई है।

पैसे की चमक गंदी नाली में खींच लायी

आने वाली पुस्तक में नई युक्ति आजमाई है।

कीमत सत्तावन कविताओं की प्रिंट

और साढ़े छप्पन ही छपवाई हैं।

साहित्य समाज का दर्पण है

कवि ने वही रीत निभाई है?

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