चुनौती

चुनौती

खुली हवा में,

निर्बाध और स्वच्छंद हो,

कृत्रितमता तज,

प्रकृति की सुंदरता को,

पल भर निहारने की।

 

चुनौती,

मध्यवर्ग के स्तर को,

बिना उपर नीचे किये,

निरंतर स्थिर रख,

दुनिया में जिंदा रह,

जिन्दगी से लडने की।

 

चुनौती,

बचपन की सुहानी यादों को,

लाल कपडे में लपेट,

जीवन भर उसका,

अवलोकन कर,

मृत्यु का इंतजार करने की।

 

चुनौती,

तकलीफों को पीछे छोड,

दुनिया के रेलमपेल में,

बिना एक दूसरे का,

सर कलम किये,

अपने लिए एक ठौर तलाशने की।

 

चुनौती,

नवसामंतों की भीड में,

अपने और परायों को,

पहचान कर,

स्वयं को गांधीवादी,

या समतावादी,

या फिर मनुष्य बने रहने की।

 

नवल किशो कुमार

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