दो छोटी कविताएं

1

कचरे की ढ़ेरी पे

मानो सिंहासन पे हो बैठा

जाने किस उधेड-बुन में

अपने गालो पे हाथ धरे

कचरे में पडे एक आइने में

अक्स देखता अपना

निहारता अपने को

एक भिखारी।

 

2

 

सभ्य काॅलोनी के घरो का

नाकारा सामान

कूडा करकट

कचरा पात्र में

कालोनी के बीचो बीच भरा पड़ा

बीनता ढूंढता

जाने क्या

उस ढेर में

वो भिखारी।

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