गान तेरा ही करुँ
प्रताप
नारायण सिंह
बस गान तेरा ही करुँ
पथ भरा हो तिमिर से या रश्मियों से
हो भरा वह कंटकों से या
सुमन से
जो तुम्हारे द्वार तक ले जाए मुझको
बस यही वरदान दो कि मैं
सदा
उस पंथ पर ही पग धरूँ
बस गान तेरा ही करुँ
तीब्र लहरें हों भले
या शांत धारा
दीखता हो दूर कितना ही किनारा
आ रही हो रश्मि तेरी जिस दिशा
से
बस यही वर दो उधर ही मैं सदा
नाव अपनी ले चलूँ
बस गान तेरा ही करुँ
नीद में होऊं भले या चेतना में
हर्ष में होऊं भले या वेदना में
एक
पल भी भूल पाऊं ना तुम्हे
बस यही कर दो सदा ही मैं तुम्हारा
हर घड़ी सुमिरन
करुँ
बस गान तेरा ही करुँ
खींचती हैं ओर अपनी
वासनायें
दंभ भी फुंफकारता है फन उठाये
बिद्ध हूँ मैं पाश में माया जगत के
बन्ध सारे काट दो कि मैं सदा
बस ध्यान तुम पर ही धरूँ
बस गान तेरा ही
करुँ