“हाँ खैरात हूँ मै ”
रहमो करम खैरात हूँ मै हाँ अपने दर से ठुकरा दो मुझे. खरोंच के फैंक दो स्मृतियों को मेरी हाँ जहन से अपने मिटा दो मुझे मेरा अस्तित्व बोध भी सताये ना तुम्हे हाँ बीती बात की तरह झुटला दो मुझे मेरे साये से भी शिकवा तुमको हाँ उड़ते धूल के गुबार में मिला दो मुझे ख्वाबों मे भी आके सता जाऊँ न कभी हाँ ऐसी कोई संगदिल सजा दो मुझे नज़र फेर के लेके शिकन इक चेहरे पे हाँ गुजरी एक रात सा दगा दो मुझे हाँ खैरात हूँ मै .....ठुकरा दो मुझे
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