हे भारत के उच्च हिमालय महिमा मण्डित तेज तुम्हारा।
तुम हो मेरे प्राण हृदय सब
कभी नही थे निर्दय तुम जब
हरित भरित है रत्नालंकृत पूरी बसुधा सेज तुम्हारा।
हे भारत के उच्च हिमालय महिमा मण्डित तेज तुम्हारा।।1।।
शुभ्र श्वेत उत्तुंगावस्थित
समयासम अरू विषम परिस्थिति
शीत उष्ण वारिद से संयुक्त नही रहा परहेज तुम्हारा।
हे भारत के उच्च हिमालय महिमा मण्डित तेज तुम्हारा।।2।।
हृदय टूटता मन गल जाता
व्यथित जनों से तन जल जाता
भयाकान्त हो सिसक सिसक कर नमन करे परवेज तुम्हारा।
हे भारत के उच्च हिमालय महिमा मण्डित तेज तुम्हारा।।3।।
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