तिरंगा ओढ़ गए ,न आओगे कहते हैं
पर खूंटी पर टंगी वर्दी
मेज पर रखी मुस्कान
छुअन का अहसास कराती है
 क्यों तुम्हारी खुशबु
मेरे बदन को सहलाती है
तुम्हारे हाथ की हरारत
मेरे सपनो को पिघलाती है 
पगली है कहते है सभी
पर क्यों हर शय 
तेरी परछाई दिखाती  है 
अंचल में भर जुगनू
तेरी राह पर बिछा आई हूँ
तुम आओगे इस उम्मीद में
खुला दरवाजा छोड़ आई हूँ
हवा की ये दस्तक
मुझे रात भर जगाती है  
मै भाग के दरवाजे तक जाती हूँ 
तो खामोशी मुझपे मुस्काती है 
पागल हूँ कह के कमरे में
बंद कर दिया है
तस्वीर भी तेरी
मुझसे लेलिया है
तुम आओ तो लौट न जाओ 
ये बात  मुझको डराती  है
आज फिजाओं में चाहत के गीत है 
हर किसी के पास उस का मीत है  
तुम आ जाओ
तो प्रीत मेरी भी अंगडाई ले 
 मांग मेरी सजे 
इन सूनी कलाइयों में 
कुछ चुडिया चढें 
बिन्दिया जो इन्होने छीन ली है 
आ के लगा जाओ 
हो गए बहुत दिन अब  तो आजाओ 
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