बम फटने के बाद लाशों के ढेर चीख पुकार बिखरा आत्मसम्मान विश्वास के चीथड़े और लाल रंग का वीभत्स रूप इस के बाद भड़के दंगे इन्सान ने इन्सान को मारा दुश्मनी कोई नही फ़िर भी मारा लाशों की संख्या बढती रही कुछ पहचानी गईं कुछ यूँ ही सड़ती रहीं दफनाये या जलाये किसे कौन बताये शव गृह में रखने का खर्च सरकार कहाँ तक उठाये हुक्म हुआ इनको नदी में बहा आओ लाद ठेले पर जो मै जाने लगा एक दलाल ने रोक रास्ता कहा बहाते हो क्यों मेडिकल कॉलेज में बेच दो तुम्हारी हो जायेगी कमाई मुझको मिल जाएगा कमीशन और इस लाश को ठिकाना नेक काम है वो कुछ सीखेंगे डाक्टर बनेंगे ,सेवा करेंगे मुझे बेटे का तड़प तदप के मरना याद आया पेसे नही थे तो देखा तक नही सेवा तो जरूर करेंगें पर अमीरों की में नदी की ओर चल दिया
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