झंकृत

 

झन - झन झंकृत हृदय आज है

वपु में बजते सभी साज हैं

पी आने का मिला भास है

मिटेगा चिर विछोह त्रास है

 

मंद - मंद मादक बयार है

खिल प्रकृति ने किया शृंगार है

आनन सरोज अति विलास है

कानन कुसुम मधु उल्लास है

 

अंग - अंग आतप शुमार है

देह नही उर कि पुकार है

दंभ, मान, धन  सब विकार है

प्रेम ही जीवन आधार है

 

रोम - रोम रस, रुधित राग है

मिला जो तेरा अनुराग है

मन सुरभित, तन नित निखार है

नभ - मुक्त, तल नव विस्तार है

 

घन - घन घोर घटा अपार है

संग तुम मेरा अभिसार है

अनंत चेतना का निधान है

मिलन हमारा प्रभु विधान है

 

कवि कुलवंत सिंह

 

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