जीवन
उत्सव --
सुमित्रानंदन पंत
अरुणोदय नव, लोकोदय नव !
मंगल
ध्वनि हर्षित जन मंदिर
गूँज
रहा अम्बर में मधुरव !
स्वर्णोदय नव , सर्वोदय नव !
रजत
झांझ से बचते तरु दल
स्वर्णिम निर्झर झरते कल कल,
मुखर
तुम्हारे पग पायल
यह भू
जीवन शोभा का उत्सव !
स्वप्न ज्वाल धरणी का अंचल,
अंधकार उड़ रहा आजकल ,
स्वर्ण द्रवित हो रही चेतना
विजय
दीप्त अब विश्व पराभव !
हरित
पीत छायाएँ सुंदर
लोट
रहीं धरती की रज पर,
स्वर्णारुण आभाएँ भर भर
लुटा
रहीं अम्बर का वैभव !
ईंगुर
रंग के खिलते पल्लव
उर
में भर स्वप्नों का मार्दव,
रक्तोज्ज्वल यौवन प्ररोह में
फ़ूट
रहा वसुधा का शैशव !
यह
जीवन मंगल का गायन,
यह
संघर्षण निरत पुरातन
जन
युग के कटु हाहारव में
मानव
युग का होता उद्भव !