कभी किसी रोज"

"कभी किसी रोज"
सुनना चाहता हूँ तुम्हे
बैठ खुले आसमान के नीचे सारी रात
चुनना चाहता हूँ रात भर
तुम्हारे होठों से झरते मोतियों को
अपनी पलकों से एक एक करभरना चाहता हूँ अपनी हथेलियों में
चाँदनी से धुले तुम्हारे चेहरे की स्निग्धता
महसूस करना चाहता हूतुम्हारे बालों से ढके अपने चेहरे पर
तुम्हारे साँसों की उष्णता सारी रात
वह रात जो समय की
सीमाओं से परे होगी
और फिर किसी सूरज के
निकलने का भय न होगा.

 

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