'कबीर
तुम कहाँ हो'
कबीर तुम कहाँ
हो.................
आज इस युग को तुम्हारी ज़रूरत है,
भटकों हुओं को तुम्हारी वाणी की ज़रूरत है,
भूलों हुओं
को दिशा की ज़रूरत है
तुमने
कहा -----
'जो
नर बकरी खात है, ताको कौन हवाल '
पर
अब नर ही नर को खात है, बुरा धरती का हाल
!
कबीर तुम कहाँ
हो.................
आज इस युग को तुम्हारी ज़रूरत है,
भटकों हुओं को तुम्हारी वाणी
की ज़रूरत है,
भूलों हुओं को दिशा की ज़रूरत
है,
तुमने कहा -----
'मन
के मतै न चालिए
'
पर - अब, मन के मतै ही चालिए,
स्वाहा सब कर डालिए !
कबीर तुम कहाँ
हो.................
आज इस युग को तुम्हारी ज़रूरत है,
भटकों हुओं को तुम्हारी वाणी
की ज़रूरत है,
भूलों हुओं को दिशा की ज़रूरत
है,
तुमने कहा -----
'तू
-
तू
करता
तू
भया,
मुझ
में
रही
न
हूँ
'
पर अब -
तू तू मैं मैं हो रही, हर मन में बसी है
'हूँ',
कबीर तुम कहाँ
हो.................
आज इस युग को तुम्हारी ज़रूरत है,
भटकों हुओं को तुम्हारी वाणी
की ज़रूरत है,
भूलों हुओं को दिशा की ज़रूरत
है,
तुमने कहा -----
'राम
नाम निज पाया सारा, अविरथ झूठा सकल
संसारा',
पर अब-राम नाम तो झूठा सारा,सुन्दर,मीठा लगे संसारा,
कबीर तुम कहाँ
हो.................
आज इस युग को तुम्हारी ज़रूरत है,
भटकों हुओं को तुम्हारी वाणी
की ज़रूरत है,
भूलों हुओं को दिशा की ज़रूरत
है,
तुमने ठीक ही कहा था -----
'झीनी
झीनी बीनी चदरिया, ओढ़ के मैली कीन्ही चदरिया'
आज हुआ बुरा हाल यूँ उसका,मैल से कटती जाए चदरिया
!
कबीर तुम कहाँ हो.................
आज इस युग को तुम्हारी ज़रूरत है,
भटकों हुओं को तुम्हारी वाणी
की ज़रूरत है,
भूलों हुओं को दिशा की ज़रूरत
है,