कैसे जान पाओगे"
खामोश खडे हैं स्वर ये सारे
शब्द बेबस हैं नजर चुराने को
ऑंखें भी प्रतिज्ञाबद्ध हो रही
अश्को को कोरो तले छुपाने को
भाव भंगिमा ने श्रृंगार कर लिया
दाग-ऐ-दर्द मिटाने को
हरकते भी चंचल हो गयी कुछ
झूठी उमंग लहर दर्शाने को
बोझिल होकर अधरों ने हाँ कर दी
मुस्कान सुधा छलकाने को
जान सकोगे कैसे, रह गया खुला है
जख्म कौन सा सिल जाने को ?..........