कली

कली खिले तो भँवरा आए

आकर कानों में गुनगुनाए

मीत मेरे जुदा होना

मौसम पिया मिलन के आए

पिया है तो जिया जिया है

बिन पिया के जिया मर जाए

चलता हुआ मुसाफिर है

बिन चले पत्थर कहलाए

कांटों में ही खिले गुलाब

बिन खुबू फूल मुरझाए

बिजली से ही बादल बहके

बिन बरसे भी मन भीग जाए

पढ़ाव तो आएगा ही

उमंग कभी रुक पाए

बाधाओं से बढ़े हौसला

इच्छा परिंदों की थम पाए

कुछ पल भारी होते हैं

विछोह दिल सह पाए

उम्मीद जिंदा रखो हर पल

खालीपन यूं ही भर जाए

 

 

मुकेश पोपली सी-254, विकास पुरी नई दिल्ली-110018

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