अभावों
में
बीता
हो
शैशव,
बचपन
भी
हो
द्वंद
भरा
|
युवावस्था
संघर्ष
भरी
हो
,
कविता
उपजे
उसी
धरा
||
व्यंग्य
ओज
अलंकार
हैं
इसके,
अंतर्मन
को
छू
जाती
|
इतनी
शक्ति
पाई
इसने
,
जड़
तक
को
चेतन
कर
जाती
||
करुणा
ममता
दया
दृष्टी
से,
हर
प्राणी
को
अपनाए,
क्रूर
ह्रदय
हो
चाहे
कितना,
उसको
राह
पे
ले
आए
|
भीगी
पलकें
भीगा
दामन,
सुलगती
सांसे
दहकती
छाती
|
विरह
अग्नि
होठों
पे
आह
,
कविता
वहाँ
जनम
है
पाती
||
कवि
की
रचना
तथ्यपरक
हो,
फूंके
वो
जन-जन
में
प्राण
|
संयमित
होकर
कलम
उठाये,
उद्देश्य
हो
उसका
जग-कल्याण||