कृष्ण का पलायन
माखन के चोर थे,
मन के चितचोर थे,
बजाते बांसुरी और पहिनते पंखमोर थे,
रास के रचैया थे व नाग के नथैया थे,
निर्वस्त्र गोपियों के वस्त्रों के चोरैया थे.
कृष्ण जी महान थे,
बुद्धि की खान थे,
चतुराई में काटते बड़े बड़ों के कान थे,
तो वृन्दावन छोड़ जब मथुरा को धाये थे,
फिर जीवन भर क्यों लौट के न आये थे?
कृष्ण की प्रियतमा थीं,
हृदय की रानी थीं,
पूरी सोलह हज़ार आठ गोपियां बौरानी थीं,
वस्त्रहरण के दिन से वे ऐसी खिसियानी थीं,
नन्द व यशोदा के समझाए भी न मानी थीं.
होली के दिन कृष्ण को छकाने की ठानी थी,
घेरकर,
पकड़कर सब करने लगी मनमानी थीं,
टेसू के रंगों में रंगकर माखन में डुबोया था,
व जमुना में गिराकर खूब तनबदन धोया था.
उनके वस्त्रों को लेकर अपने घर चली गईं थीं,
निर्वस्त्र कृष्ण की लाज से नानी
मर गई थी,
सहमे कृष्ण वृन्दावन छोड़ मथुरा को धाये थे,
व भूलकर भी लौटने का साहस न कर पाए थे.