१.         पुकार

 

अतीत पुराना है और भवि्ष्य नया है,

वर्तमान होने लगा है पुन: मूर्तिमान,

कोई तो होगा जो आकर कहेगा जागो,

यही है वो वक्त उठ खडा होना है तुम्है

 

 

 

२.         रॆखा

 

 

रेखा एक अतृप्तता की,

युगो’ के पश्चात भी,

वैम्नस्यता और पराभव के भावो’ के समान,

शाम के धुन्धलके सायो’ की तरह,

और चील के पन्खो’ के जैसे,

हर पल , हर वक्त, अकेले मे’,

मुझे छॊटा बना देती है, मेरे सामने

 

३.         काला पानी

 

शब्द निष्प्राय होने लगे,जुबा’ निढाल हॊ चुकी,

स्व्प्न कतराने लगे, सुबह खो गयी,

शाम काली हो गयी, क्या है ये?

क्या इसी को तो नही’ कहते काला पानी..

 

 

४.         तुम और मै’

 

 

तुम और मै’, पुराने हो चुके है’ शब्द,

अर्थःहीन से लगते है’ अब,

लेकिन इस हीन अर्थ को समझने की,

कोशिशे’ अब भी जारी है’

 

५.         वास्तविकता

 

 

प्य़ार निष्काम और निस्वार्थ होना चाहिये

ऐसा किताबो’ मे’ लिखा है,

परन्तु क्या ऐसा नही’ है ,

कि आज ये शब्द ,

किसी अमीर के शयनकक्ष मे’ सजे,

गुलदान मे’ रखे, प्लास्टिक के गुलाब के मानिन्द,

जो सुवासित है’ कॄत्रिमता से,

जल्द ही अपना रुप खो बैठे’गे,

लेकिन पढे अवश्य जाये’गे, किताबो’ मे’.
 

 
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