क्या तुम वही हो

 

मैं एक दिन चौराहे पर खड़ा था

तभी मेरी नजर अचानक उस पर पड़ी

मैंने प्रश्न किया क्या यह वही है

जिसे मैंने दिल से चाहा था

क्या यह वही है जिसे मैंने

एक देवी की तरह पूजा था

 

फिर मेरी अन्तरात्मा ने स्वयं आवाज दी

नहीं यह वह कैसे हो सकती है

वह तो तितलियों सी चंचल थी

लेकिन यह तो मेमनों सी गंभीर है

 

वह तो कुमुदिनी-सी सुंदर और हसीन थी

लेकिन यह तो अमावस की चांदनी सी है

वह तो मधुमक्खी जैसी हमेशा प्रसन्न रहती थी

लेकिन यह तो शिशिर के तारोंसी है

वह तो बच्चों जैसी अनुभवहीन थी

लेकिन यह तो सारंगी-सी सधी हुई लगती है

उसका चेहरा तो पान के समान कोमल था

लेकिन इसका चेहरा तो रेत जैसा रूखा है

 

तभी एक अशोभनीय भद्र पुरुष आए

और उसे बस में चढ़ने को कहे

मैं उस भद्र पुरुष को बहुत देर तक देखता रहा

जब बस चली गई तो मैंने पता किया

तो मालूम हुआ कि वह भद्र पुरुष ही

उस देवी का पति है

 

मैं सोचा था दुनिया में सुंदर चीज़ें

महज इसलिए भगवान बनाकर भेजता है

क्या इसीलिए मनमोहक फूलों को रचता है

जो गले का हार, महफ़िल की रौनक बनने लायक हो

जो पुजारियों की पूज्य हो

जो अमर शहीदों को श्रद्धासुमन में अर्पित किये जाते हैं

जो देवताओं को श्रद्धापूर्वक चढाये जाते हैं

उस पवित्र फ़ूल को इस अमावस और चांद

की बेमेल जोड़ी के साथ

नवयौवन और वानप्रस्थ का साथ बांधकर

इस अभद्र समाज की देन दहेज के कारण

जीतेजी, पैरों तले, ’गोकुल कुचला जाये

 

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